Thursday, December 31, 2009

Tokri wali

प्रिये
तुम्हारे होंठों की लिपिस्टिक की नमी
बनी रहती है भरी दुपहरी मैं,
ये बड़ी बात नहीं ...

बड़ी बात तो ये कि
अब उसके माथे से भी
उतना पसीना नही निकलता है
जबकि तुम कदम दो कदम
चलने मैं, छतरी लगा लेती हो ,
और वो मीलों तक सर पर टोकरी लेकर चलती है .

तुम सोचती रहती हो हरदम ,
फैशन टीवी चैनलों और मैगजीनों मैं -
 कपड़ों  के कद को कैसे कम किया जाए .
और  एक वो..
जो इस उम्मीद मैं दुगना काम करती है कि-
मुनाफा बड़े तो सेल से एक सस्ती सी साडी खरीद लाये,
क्योंकि-"जर्जर हो चुकी साड़ी को आते जाते
कई जोड़ी वहशी आँखें घूरा करती हैं."

Naye saal ka Halla!

कैलेंडर की तारीखें फिर घूम के आ रही है
सब तैयार हैं,
नयी आदतें गले लगाने के,
पुरानी आदतों से बाज़ आने के.

शराब मुर्गे और
 डी जे  की धुन पर,
सारा शहर -
रंगने को बेताब है .

रईस माँ बाप- महँगी गाड़ियों
के शोरूम मैं  चक्कर लगा रहे हैं,
अपने लाडले को न्यू ईयर सरप्राईज़
-गिफ्ट देने के चक्कर मैं .

और इसी बीच घडी
 के १२ बजाते ही
सड़क किनारे  एक भिखारी
ने दम तोड़ दिया

उसके चेहरे पर
संतोष था की
उसने खुद से 
किया हुआ  रीजोलुशन निभाया

फटे कम्बल के बावजूद -
उसने साल भर कोशिश की जीने की ,
कंपकपाती ठण्ड मैं
और वो कामयाब रहा .

Wednesday, December 30, 2009

Classroom

क्लास मैं फैकल्टी
के मुह से एक किताब 
का  उल्लेख होता है
और कई हाथ एक साथ
अपनी नोटबुक मैं
वो नाम दर्ज कर लेते हैं .

इस उम्मीद मैं कि-
 ज्ञान टटोलेंगे इस पुस्तक का
 और फैकल्टी  भी अपने स्टुडेंट्स की
लगन देखकर खुश होती है

 लेकिन...
 सालों से ऐसा होता आया है ...
 और लाइब्ररी के एक रैक मैं 
वो  किताब सालों  से दबी पड़ी है

हर साल नए हाथ
नयी नोटबुक मैं इस किताब का नाम
इसी उत्साह से लिखते हैं .

Hichkiyan

हिचकियाँ आई तो
समझा की याद किया तुमने मुझे
यद्धपि मुझे पता हैं
इसके वैज्ञानिक कारण
मगर ...
इस डर से कि कहीं
भावनाओं में बह न जाऊं
पानी पीकर बहा दीं
यादें तुम्हारी.

Tairne wale sapne

छोटा सा मेरा भी आसमान
छोटी सी मेरी भी हस्ती
न हो सूरज की गलियां
पर जुगनू वाली मेरी बस्ती .

मैं भी दिखला दूंगा जग को
मेरे सपने भी उड़ते हैं
पंख जहाँ पर थक जाते हैं
मेरे पंख वहीँ उगते हैं .

Galtiyan

आज तुमसे बात नही हो पायी,
तुमको देखा था मैंने -
लेकिन ये सोचकर कि
पहले तुम बोलो,
बात हो नही पायी.

मैंने सोचा तुम मना लोगी
 हमेशा की तरह,
 और तुमने सोचा -
मैं बात शुरू करूँ
बस... शुरुवात हो नही पायी .

मैंने सोचा तुम बचा लोगी ,
बेढंगी आँधियों से  आशियाना .
लेकिन... बिखरा गयी हवाएं
हमारे रिश्ते को,
फिर मुलाकात  हो नहीं पायी.
शुरुवात हो नही पायी!
बात हो नही पायी!!

Purana sa ek Ghar

कल रात एक हल्के से
भूकंप के झटके ने
एक पुराने से घर की
बुनियाद हिला दी थी .

पडोसी परेशान थे
उस  घर की  नयी दरारों  को  देखकर
क्योंकि उनको फख्र था
घर के  पुराने डिजाईन  पर

लेकिन कुछ किया नही गया उस घर के लिए
सिवा फख्र जताने के ...
घर के मालिक उसे भूलकर
कहीं और शहर मैं बस चुके थे .

 न उस डिजाईन के घर बनाये गए ,
ना पुरखों के उस घर को संवारा गया...
और सुना है ...यह घर बड़ा खौफजदा रहता था
पड़ोस मैं पनप आये ईट के नए  घरों को देखकर

और...नए "एम. एल. ए" साहब ने तो -
अपने घर तक सीमेंटेड रोड बनवाने की जिद मैं
उस घर के बचपन का गवाह रहा
 एक मात्र पेड़ भी गिरा डाला था ....

लेकिन अफ़सोस ना था किसी को भी ..
सिवा कुछ छोटे बच्चों के
जो  खेल खेल मैं
उसके टूटे दरख्तों  से
भीतर चले जाया करते थे...

Tuesday, December 29, 2009

subah

सुबह सवेरे उठकर महानगरों मैं
लोग पार्कों मैं निकल जाते हैं
और झूठी हंसी की किलकारियां
 आस पास गूंजने लगती हैं
तब अचानक किसी को
हंसी के दरमयां
याद आता है ...
ऑफिस का पेंडिंग काम
और वो जल्दी मैं अपने अपार्टमेंट्स की
और भागता है
पीछे से आवाज़ कोंध्ती है ...
"शर्मा जी आजकल वार्म अप को लेकर बड़े कांशस रहते हैं."

shahar main girte kasbe

मुझे याद है मेरा घर
शहर से २० घंटे का मुश्किल  सफ़र
लेकिन सफ़र को आसान बनाती
पानी मैं धुलती टहनियां
और ट्रेन का पीछा करती नदियाँ

मेरे कस्बे मैं एक दूसरे को जानते लोग
 और खरोंचें लगने पर जमा हो जाता 
लोगों का हुजूम.

मेरा घर शहर से कुछ दूर
हुआ करता था ...
लेकिन...
 अब शहर आ रहा है
मेरे गली मोहल्ले के पास
आसार कम हैं कि
पडोसी,पडोसी को पहचान पाए

Tumhara Saath

अब आसान है तुम्हें .
मुझको भूल जाना .
जबकि तुम मुझे समझने लगी हो.....
क्योंकि...
मैं अब वैसी बातें नहीं कर पाता हूँ .
तुमको वो वक़्त नही दे पाता हूँ .
सारे दिन का गुस्सा तुमको गिफ्ट कर देता हूँ .
इसलिए...
तुमने ठान लिया है -
की मेरे साथ अब वक़्त नही गुजार सकती .
मेरे सपनो को और नहीं संवार सकती.

ठीक है जाओ सफ़र अधूरा ही सही
लेकिन याद रखोगी इस अधूरे सफ़र को ..
मुझे पता है ,तुम हमेशा से समझदार हो.
जब कभी मैं याद करूँगा , और तुमको हिचकियाँ आएँगी
सामने पड़ी सुराही का पानी,एक बार मैं गटक जाओगी....