Sunday, November 28, 2010

"प्रतिज्ञा"

झंझावातों की सजिश है
आज माहौल शांत रखा गया है ,
ताकि, जब मैं बेख़ौफ़ होकर बाहर निकलूं 
-तो मुझे दबोच लिया जाए.

लेकिन मुझे पता है, 
इस इलाके का  इतिहास 
माहौल इतना शांत कभी नहीं  रहा है.

लेकिन फिर भी  मैं जाऊंगा 
क्योंकि जो रुक  गया  आज 
तो  कभी चल नही पाउँगा.
और, खुद को बचाने के क्रम में
आज कुछ घिस भी गया,
तो मलाल नही
क्योंकि मुझे खुद को जवाब देना होता है .


Sunday, November 21, 2010

"udaseenta "

पहाड़ से टूटकर
कुछ पत्थर
आ गिरे रोड पर
और अगले ही दिन
अखबारों के मुख पृष्ठ पर
चर्चे थे-
अवैध खनन और 
सरकार की लचीली फ़ॉरेस्ट नीति के .
माफियाओं और नेताओं  के आगे झुकती
बयूरोक्रेसी की रीति के .

लोगों ने भी  चाय की दुकानों में
बैठकर खूब परिचर्चा की
कुछ लोगों ने  तो नारे भी लगाये
और कुछ लोग मज़े मज़े में
सरकारी बस फूक आये .

ऐसे ही कुछ दिनों तक
होता  रहा हो हल्ला
और उसके बाद, अखबारों ने
मुख पृष्ठ बदल लिया
और लोगों ने करवट .