Friday, December 16, 2011

sarkari naukari

यहाँ भी पैसा
वहां भी पैसा
लूट मची है
लूट लो भाई

इधर कमीशन
उधर "दस्तूरी'
नौकरी सरकारी,
सब हसरत पूरी
कौन जो रोके,
कौन जो टोके
किसके बाप का
क्या जाता है
कितनी कितनी
इस्कीमें आई
गरीब है, बस
रोता जाता है

रोने दो
हमको क्या करना
सब अपनी किस्मत का लेखा
इस्कीम मेरी, पैसा मेरा
सब कुछ मेरे घर का ठेका







Friday, November 4, 2011

Ghar ki choti bachchi

घर की की छोटी बच्ची ने
यहं वहां से कुछ वेस्टर्न डांस
के स्टेप सीख डाले
वो अपने इस नए स्टाइल से
कई मौकों पर नाची
लेकिन उसके इस विदेशी नाच पर

अब उसको प्यार से
गोद में नही उठाते थे घर के लोग

डांस के वक़्त,
कुछ तो दबे मुंह
उसके कॉन्वेंट स्कूल की पढाई
को कोसने लगते थे.

लेकिन बच्ची समझदार थी
अबकी बैसाखी ख़ालिश
पंजाबी अंदाज़ मैं नाची..
अबकी बाकायदा प्रक्टिस भी की

नतीजा हुआ भी वही..
फिर से लाडली हो गयी ..
आज बच्ची बड़ी हो गयी है
ख्याल आया कि
एक बार पुराने ढंग से नाचे
लेकिन नही..
अब उसके हाथ,
पुराने वाले विदेशी अंदाज़ 
मैं नही घूम रहे थे
खुद ब खुद चल रहे थे
समाज के सीखे सिखाये ढर्रे पर,
किसी मशीन की मानिंद.





Thursday, September 8, 2011

Alarm !!

टिक टिक टिक टिक
घडी  का अलार्म
फिर बेवक्त जगायेगा,
कमबख्त...
घड़ी को कौन मनाये
रूठ जाती है
क्योंकि इसको
बेरुखी से बंद कर देता हूँ.
और आधा घंटा इसको
खिसकाकर 
फिर से  सोने चला जाता हूँ .






Monday, May 23, 2011

" रिक्त "

जा रहा हूँ
ख्याल आया  कि जाना चाहिए .
मंजिल पता है
बस रास्ते का संशय है

रूकने का लालच आता है
लेकिन ...
रुक नही सकता
वजूद मिट जाएगा

मालूम है
राह के  तीखे काँटों से निपटने को
धार नाकाफी है 
लेकिन मेरे  "विश्वास" के चप्पलों ने आज  तक
नाउम्मीद नही किया है ...

देखूंगा ..
कहीं किसी रोज़ रेलवे स्टेशन पे मिले
तो बड़ी गरमजोशी से मिलेंगे ....."