Wednesday, February 12, 2014

" भारत भाग्य... "



बोला था -
घर घर जाओ,
जाकर हाल पूछते आओ .

दो दिन में, दस गाँवों का
तुम  सर्वे करके लाए हो ,
सच सच बोलो, क्या फिर से
सिर्फ़ सरपंच से मिलके आए हो?

कितने भूखे हैं,
कितने लाचार .
वो शख्स समझ कहाँ पाया है ?
जो जातिवाद के चश्मे से इंसान नापता आया है.

बोला था-
हर चूल्‍हे के हर हाल को.
बेरोज़गारी के हर जाल को,
क़ैद कर लो, इन फार्मों में.

इनसे ,भारत निर्माण की 
तस्वीरें  बनेगी ,
देश बनेगा ,
तक़दीरें बनेंगी 

सच बोलो ! ये आँकड़े -
क्या खुद से भरकर आए हो?
सच सच बोलो ,क्या फिर से-
सिर्फ़ सरपंच से मिलकर आए हो?

Thursday, January 23, 2014

आवेश में हूँ .


तेरह बूढ़ों की नसों में
रेंगता रहा लहू,
और एक आदिवासी लड़की
की चीख पुकार,
दब गयी
उनके सामूहिक शोर शराबे में .

कोई बताए कि क्यों,
इन बूढ़े ठरकी लोगों को,
 बैठा दिया जाता है,
पारंपरिक पंचायतों में ?

और कैसे बन जाती हैं,
ऐसी वहशी  योजनायें,
इन बूड़ी जर्जर पंचायतों में?
जो आज तक
स्कूल की टूटी चारदीवारी
सही नहीं करवा पाईं.

कोई बताए कि क्यों
'कम्युनिटी पोलिसिंग'  के नाम पर
सही वक़्त पर,
पोलीस के हाथ में
आ जाता है ठेंगा?

और औरतें,
जिन्हें अमूमन पता होता है
मुहल्ले में पक रही खिचड़ी का,
क्यों बेख़बर रहती हैं,
इस खबर से
कि कंगारू पंचायत
ने एक आदिवासी लड़की
के साथ सामूहिक बलात्कार
का फरमान सुनाया है?



Sunday, January 19, 2014

पार्क में


टूटी बेंच के नीचे,
पड़े मूँगफली के
दबे कुचले
छिलके की तरह .
अकेला बैठा  इंसान
यहाँ अक्सर सोचता है
कुछ ऐसा-
जो ना सोचे भी तो
कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा.

टॉफी


पीली टॉफी,
नीली टॉफी
चमकीली साड़ी में लिपटी टॉफी.

चपटी टॉफी, गोल टॉफी,
ढोलक की शक्ल वाली  डाँवाडोल टॉफी.

छोटी लड़की ने सारी टॉफी देख डालीं-
परचून की दुकान के मर्तबान में.

तब दुकानदार को  पर्ची बढ़ाई.
49 के सामान  पर, दुकानदार ने-
एक रुपये की टॉफी देनी चाही.

मर्तबान में ज्यों ही हाथ डाला,
लड़की की आँखों के आगे-
फिर नाचने लगीं
पीली टॉफी,
नीली टॉफी
चमकीली साड़ी में लिपटी टॉफी.

कुछ टॉफियाँ
खींचकर बाहर निकालीं
तब समझदार छोटी लड़की बोली-
टॉफी नहीं,
इनके बदले
माचिस की  डिब्बी  दे  दो .


Saturday, January 18, 2014

ज़मीनी झगड़ा


नदी को बहुत कुछ दिया-
 जंगलों, पेड़ -पॉंधों  और चट्टानों ने.
नदी सबको समेटकर ले आई

जैसे माँ लेकर आती है
अपने बच्चों के लिए
चीज़ें बचाकर.

एक दिन नदी ने
पानी कम करके
एक द्वीप जन्मा दिया .

लेकिन, सरहद थी आस पास
आपस में ,बंदूकें तान दीं गयीं
इस पर अधिकार  को लेकर .

द्वीप रोने लगा
वजूद पे आते ख़तरे को देख.

नदी की ममता रोती हुई बोल उठी-
कुछ साल रुक जा बेटा
धीरे धीरे तुझे अपनी धार से
खुद ही ख़त्म कर दूँगी.

Monday, January 13, 2014

तस्वीर को देखकर




किसका कंधा,
किसको नसीब होता है
यह बड़ा अजीब होता है .

कब से परेशान हूँ
क्यों हो रहा है ऐसा?
मेरी मिट्टी में,
कभी जवान मारे जाते हैं,
कभी .बेज़बान?

गुनेहगार हैं सब वो ,
जो देखते सुनते हैं,
पर करते कुछ नहीं.
और वो भी,
जो करते सब कुछ हैं,
पर देखते सुनते नहीं.





कैसा लगा ?




कैसा लगा ?
मुझे तो मज़ा आ गया
तुमको देखकर.
सच ....
रस्सी से बँधे हो
और चारों ओर
बदबूदार काला पानी.

ये मत कहना अब ,
कि तुम आदमियों का
कचरा साफ़ करते हो .

आदमी हैं कहाँ यहाँ दोस्त?
आदमी होते तो तुम
आज नीचे नही होते.


Monday, January 6, 2014

माशूक बाज़

amur falcons satellite tagged in nagaland tracked over arabian sea


सुनते हैं,
5600 किलोमीटर तक
बिना रुके उड़ता रहा यह बाज़
क्यों आख़िर?
जानकार कहते हैं,
जब बर्फवारी से ठीक  पहले,
 खाना कम होने लगता है साइबेरिया में ,
तो ये परिंदे 
चीन, भारत और अफ्रीका
की तरफ उड़ आया करते हैं.
लेकिन कौन जाने सच्चाई ?

मुझे तो, कभी कभी
सिरी फरहाद की कहानी सी  भी  लगती है ,
हो सकता है कि,
मिलने  वादा किया हो किसी ने
किसी तय दिन ,तय जगह पर
तभी जान हथेली पर रखकर
उड़ता रहा यह छोटा सा परिंदा
वरना ऐसा जज़्बा सिर्फ़ दाने की खातिर नही हुआ करता.