आज भी याद है
प्लास्टिक की सीटी की खुशबू
जो माँ खरीदकर लायी थी एक बार बचपन मैं
...लेकिन अब मैं बड़ा हो गया हूँ,
प्लास्टिक की सीटी अब मेरे
स्वाभिमान को आहत करती है.
मैं कई महँगी चीज़ों के सपने रखता हूँ
मेरे साथियों की तरह.
...लेकिन लगता नहीं
कोई मुकाबला कर पाएगा
उस प्लास्टिक की सीटी का.
...हाथ से खाने का शौक है
लेकिन चम्मचों की दुनिया मैं मुझे,
अपना झूठा रुतबा भी-
कायम रखना है दोस्तों के बीच.
और हाँ... मैंने भी अपने शब्दकोश मैं
खेद, शर्म, और अफ़सोस जैसे शब्द
शामिल कर लिए हैं.
जब भी कोई बड़ा हादसा होता है
देश और समाज के साथ
...ये मेरी बड़ी मदद करते हैं
अपनी जिम्मेदारी से बच निकलने मैं.
...कमल किशोर पाण्डेय
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 11 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
व्वाहह..
ReplyDeleteसादर..
शुक्रिया..
Deleteवाह!बहुत खूब !!इस भाग-दोड भरी जिंदगी में बच्चों के लिए समय निकालना भी दूभर हो गया है । सुंदर व सटीक ।
ReplyDeleteThank you madam.
Deleteबहुत सटीक...
ReplyDeleteआभार मैडम।
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