कितने रोज हुए
तुमसे मिला नहीं
अबकी सोचा था
एक बार फिर
साथ में बैठकर ,
आसमान में -
तरह तरह की
शक्लें बनाते बादल देखेंगे
और शाम ढलते ढलते
चुपके से , हाथ
पकड़कर चलेंगे-
उसी सड़क पर .
जब तक कि-
जान पहचान वालों के ,
घर नही आ जाते .
लेकिन
तुम ना आ पाई
और मैं भी-
हिम्मत न जुटा पाया
प्रश्न पूछती तुम्हारी आँखों का
सामना करने का .
लेकिन ,
वो शक्ल बनाते बादल .
जानते हैं तुम्हारी अहमियत आज भी .
उनको पता है ,
जब कभी अकेला होऊंगा
छत पर ,
तब तुम्हारी याद
खुद ब खुद पास आ जाएगी .
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amazing dear....
ReplyDeleteBeautifully written.... bahut pyara..
ReplyDeleteBahut achhe Pandey Ji!!!
ReplyDeleteWaise kiska hai ye Intezar???