Thursday, September 3, 2020

विरुद्ध

 जरा देख लें अपना लोहा 

देख लें अपनी  लहू की धधक  

फिर न ऐसी आंच मिलेगी 

फिर न ऐसी धूप खिलेगी। 


सूरज से लड़ना है हमको 

अपने अंगार बढ़ाने होंगे, 

निकलने लगे  शस्त्र समर में 

अपने नाखून बढ़ाने होंगे।  


पीछे छूट जाये ये दुनिया 

खुद को आगे करना होगा 

अपने हाथ की  बाजू से खुद 

मार्ग अपना गड़ना होगा। 

उत्तरकाशी

 माँ गंगे माँ, 

खड़े प्रवाह में तेरे,

महसूस करने दिव्यता 

हैं द्वार पर तेर। 


तुझमें तप आराधना है, 

तुझमें  स्वांस है ,

तेरी प्रबल तरंगिनि में

वो  उच्छवास  है,


जो भक्त के भटकते मन को 

दे दे आसरा 

जो तुझमें रम चुका है माँ,

स्वयं कहाँ रहा?


बहा दो सारी कालिमा 

प्रकाश घोल दो

स्वयं के जल स्पर्श से माँ 

पुत्र बोल दो। 

सांठगांठ

 रातों रात 

जंगल में बन गए मकान 

सुबह पहुँच गए

अपना हिस्सा लेने भेड़िये

आंख मूंदने का  

तय हुआ वादा

इस तरह 

कागज़ पर आ गया जंगल 

और जंगल में आ बैठी  बस्ती 

मजदूर का बच्चा

 

रंग दीं  

मिटटी  की दीवारें कोयले से, 

उल जलूल आकर बनाकर उसने ।  

हंस  पड़ा उसका मजदूर बाप 

दिख पड़ी उसकी माँ की, पीली दांतपाटी 

रोशन हो गया घर । 


बाल मिठाई

 काली देह 

सफ़ेद छींटे

ज्यों ऐपण दे दिए हों किसी ने 

सांवली दुल्हन के माथे पर  

कुछ जला सा स्वाद इस मिठाई का 

गले  की उतराई में जाकर 

धीरे धीरे जीभ को अपना 

बना लेता है 

जैसे सांवली दुल्हन 

ससुरालियों  का दिल जीतने  लग जाती  है

धीरे  धीरे 

गुलदार

 


ज्यादा घातक

ज्यादा सतर्क 

ज्यादा पैने 

कभी- कभार 

बकरियों की ताक  में 

आ जाते हैं 

गुलदार गांव में


और गुलदार की तलाश  में अक्सर 

घात लगाए मिल जाते हैं शिकारी, जंगल में। 

उससे ज्यादा घातक 

ज्यादा सतर्क 

ज्यादा पैने।