Friday, December 21, 2012

कुल्लू मनाली में

कुल्लू मनाली में  देखा कि 
 कुछ पर्यटक, बर्फ की गेंदें बनाकर 
आपस में  मार रहे हैं। 
सोचता हूँ कहाँ से चल पड़ा 
उन्माद सरीखा यह फैशन ?

टूरिस्टों के लिए, 
बड़ा आसान होता है 
बर्फ की गेंदों को मारना, 
शायद उनकी मोती ताज़ी 
जैकेटों में , 
रूई के फाहे सा लगता हो 
बर्फ की गेंदों का यह हमला। 

लेकिन परेशानी है 
राघुआ जैसों के लिए 
जिनकी एक पतली सी पुरानी  कमीज़ 
ऐसे किसी भी खेल से फट सकती है 
और कड़ाके की ठण्ड साँसों को ठंडा कर सकती है। 

Wednesday, December 5, 2012

**चाय**

ट्रेन ने  तड़के सुबह स्टेशन पे जैसे ही डब्बा  लगाया,
एक लड़का चाय की केतली लेकर आया।
बोलने लगा  "हिलती डुलती  चाय "
चाय पी  लो चाय।

चाय बेचने का ऐसा  तरीका था
शायद जीने का कोई  सलीका था।
क्योंकि नया बोलेंगे  तब बिकेगा,
और जो बिकेगा तो रोटी पकेगी।

बहरहाल, जिन लोगों ने चाय मंगवाई
उन सबको हिलती डुलती  चाय बेहद  पसंद आई।
कहाँ ये चाय और कहाँ रेलवे की  डिप टी,
हर वो पैसेंजर बोला जिसने चाय पी।

इतने में  धीरे से ट्रेन खुद को पटरी पे दौड़ाने  लगी।
हिलती डुलती चाय धीरे धीरे पीछे जाने लगी।




Monday, December 3, 2012

खुद से और तुम से कुछ बात

चाँद की सिचाई करें
रात भर खिंचाई करें
थक गए कदम जो फिर तो
बूदों की सफाई करें

दिल के तालाब में 
काईयां जमीं हैं कई
आज पानी में  उतरकर
उनकी धुलाई करें .

पान की पीक जैसे
गहरा ये रंग जमकर
धुंधला सा कर दे
आँखों का फर्क करना

बातों का  तेरी जैसे
चुपके से फुसफुसाना
और उसी  लम्हे में
मुद्दतों की बातें करना .

रंग तेरा फिर लगाकर
खुद से फिर से बातें करें
बातों में  तेरी जाकर
फिर से  तेरी बातें कहें .

...........................


















Saturday, November 3, 2012

मनी प्लांट

मुझे बताया गया था
मनी प्लांट की कलम

चोरी करके लगाई जाती है,

मैंने कोशिश की

लेकिन पोंधा लगा नही।

एक दिन यों ही नज़र गयी

एक झोपड़े में पास के

तो इसको हँसता खेलता पाया।

उफ़ ..क्या शान से उगा पड़ा था यह पोंधा?

लेकिन कैसे लग गया यहाँ पर?

झोपड़ी की छोटी बच्ची के बाप को तो

पुलिस ने झूठे चोरी के इल्जाम में

जेल में डाला हुआ है

तो कलम किसने चुराई इस पोंधे की ?

किसी ने बताया -

बच्ची की माँ, इसकी कलम

मालकिन से मांग कर लायी थी।

लेकिन मनी प्लांट तो चोरी करके लगाया जाता है

...जरुर छोटी बच्ची का कारनामा है

उसी की जिद रही होगी

जो इसको उगना पड़ा इस जगह

वरना मनी प्लांट तो रईसों के घर की चीज़ है।



























Thursday, October 25, 2012

नौकरी


वही मक्खी वापस उड़ती हुई 
मेरे पास आ जाती है 
कहती है
कुछ काम तो कर लेते
मैं मोहल्ले का चक्कर लगाकर भी आ गयी.
अब उसको कैसे बताऊँ कि-
एक बार छोड़ दो फिर
नौकरी कितनी  मुश्किल से मिलती है?
उन उन लोगों से रिश्ता निकाल चुका हूँ
जिनसे आज तक बात नही की कभी  
पर सारी एप्रोच बेकार....
मक्खी समझती नही है
मगरूर मक्खी..
लेकिन...
मैं इन मक्खियों को बता देना चाहता हूँ
कि नौकरियां तो मेरे आगे पीछे घूमती हैं
वो तो मैं ही हूँ जो
बेरोजगार रहने मैं ख़ुशी महसूस करता हूँ  
आखिर माँ बाबू जी की मेहनत की रोटी हमारी ही तो है
अपनी चीज़ से कैसा शर्माना..
नालायक मक्खी इस अपनेपन को क्या समझे ?
...चलो वापस devnet jobs में जुट जाता हूँ...किसी को पता न चले.. 

Friday, February 24, 2012

झबरा Vs ब्रूनो

था एक जवान

आवारा कुत्ता

झबरा

-नाम दिया था

गाँव वालों ने उसको ,

दौर था तबका- जब

ग्रीनफील्ड इन्वेस्टमेंट के नाम पर

खेतों की फसलों पर एअरपोर्ट आ रहे थे.

एक अमीर आया 

ऐसा ही एक प्रस्ताव लेकर गाँव

जब झबरा टकरा गया

उसके पालतू कुत्ते "ब्रूनो" से.

रईस कुत्ता बिगड़ गया

झबरा को देखकर

और झबरा तो पैदायशी

बिगडैल था .

टक्कर तय थी होनी

गाँव की बासी रोटी और पैडिग्री की.


ब्रूनो कार से उछल पड़ा

झबरा भी ताव में आ गया

ब्रूनो के गले मैं कुत्ते की चैन के निशान

और झबरा के गले में तेंदुए की पकड़  के निशान

-दोनों पास आ गए

झबरा ने उसको सूँघा, उसके चारों और घूमा

और आश्चर्यजनक रूप से बैठ गया.....


अटकलें थी तमाम

गाँव में.

बुज्वा कुत्तों की गंध से भरभरा गया झबरा !

कुछ बोले- झबरा ने कुछ बोला था उसके कान में

पता नही क्या सच था


...इधर सुनते हैं

आजकल रईस का कुत्ता भाग गया है घर से

हाल में खबर आई है-

गाँव की मिटटी में लोटपोट करके

अपने जिस्म से विदेशी  शैम्पू की गंध मिटा रहा है.









Wednesday, February 8, 2012

सुबह हो रही है


घरों से अदरक कूटने की आवाज़


दूर से बोलती मंदिर की घंटियाँ

आलस से लोट पोत होते गोठ के जानवर

पालतू कुत्तों का चिड़ियों के पीछे दौड़ना

चप्पलों के सरकने की आहट

बर्तनों का हलके से आपस में बोलना

दरवाजे के कुंडे की मद्धम आवाज़

रात की काली रौशनी का हलके नीले रंग में

तब्दील हो जाना,

-चूल्हे से उठते नीले धुंए की तरह

इतनी चीज़ों का एक साथ

एक अंतराल पर होना

दिखाता है

कि सुबह हो रही है

मेरे गाँव में.



बच्चों की मेहनत

हाथ में पत्थर पकडे


पेड़ के नीचे कुछ बच्चे जमा हैं

कई पत्थर हाथ से उछलते हैं

और सब पीछे को भागते हैं

कुछ अमरुद अ गिरते हैं जमीन पर

अब अमरुद पकड़ने की होड़ है.



छोटा रघु

एक अमरुद लपक लेता है

अमरुद पर

तोतों के खाने के निशान हैं

लेकिन सुर्ख लाल अमरुद का लालच...

वो दूसरी तरफ से कुरेदने लगता है.