वही मक्खी वापस उड़ती हुई
मेरे पास आ जाती है
कहती है
कुछ काम तो कर लेते
मैं मोहल्ले का चक्कर लगाकर भी आ गयी.
अब उसको कैसे बताऊँ कि-
एक बार छोड़ दो फिर
नौकरी कितनी मुश्किल से मिलती है?
उन उन लोगों से रिश्ता निकाल चुका हूँ
जिनसे आज तक बात नही की कभी
पर सारी एप्रोच बेकार....
मक्खी समझती नही है
मगरूर मक्खी..
लेकिन...
मैं इन मक्खियों को बता देना चाहता हूँ
कि नौकरियां तो मेरे आगे पीछे घूमती हैं
वो तो मैं ही हूँ जो
बेरोजगार रहने मैं ख़ुशी महसूस करता हूँ
आखिर माँ बाबू जी की मेहनत की रोटी हमारी ही तो है
अपनी चीज़ से कैसा शर्माना..
नालायक मक्खी इस अपनेपन को क्या समझे ?
...चलो वापस devnet jobs में जुट जाता हूँ...किसी को पता न चले..
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