ट्रेन ने तड़के सुबह स्टेशन पे जैसे ही डब्बा लगाया,
एक लड़का चाय की केतली लेकर आया।
बोलने लगा "हिलती डुलती चाय "
चाय पी लो चाय।
चाय बेचने का ऐसा तरीका था
शायद जीने का कोई सलीका था।
क्योंकि नया बोलेंगे तब बिकेगा,
और जो बिकेगा तो रोटी पकेगी।
बहरहाल, जिन लोगों ने चाय मंगवाई
उन सबको हिलती डुलती चाय बेहद पसंद आई।
कहाँ ये चाय और कहाँ रेलवे की डिप टी,
हर वो पैसेंजर बोला जिसने चाय पी।
इतने में धीरे से ट्रेन खुद को पटरी पे दौड़ाने लगी।
हिलती डुलती चाय धीरे धीरे पीछे जाने लगी।
एक लड़का चाय की केतली लेकर आया।
बोलने लगा "हिलती डुलती चाय "
चाय पी लो चाय।
चाय बेचने का ऐसा तरीका था
शायद जीने का कोई सलीका था।
क्योंकि नया बोलेंगे तब बिकेगा,
और जो बिकेगा तो रोटी पकेगी।
बहरहाल, जिन लोगों ने चाय मंगवाई
उन सबको हिलती डुलती चाय बेहद पसंद आई।
कहाँ ये चाय और कहाँ रेलवे की डिप टी,
हर वो पैसेंजर बोला जिसने चाय पी।
इतने में धीरे से ट्रेन खुद को पटरी पे दौड़ाने लगी।
हिलती डुलती चाय धीरे धीरे पीछे जाने लगी।
Aur wo ladka... iktaki laga kar dusri train ka intzar karne laga.... Khana khane ke liye usse abhi bhi 50 cup chai bechna baaki tha.
ReplyDeleteMain platform par khada dekh rha tha, aur soch rha tha iss main aur bazaar main kya antar hai.
Har baar hum puraani cheezo ko naya naam dekar bech dete hai...jaise aaj hamne FDI ke naam par apni mehnat se kamai azadi kho di.
Wah nandy...bahut khoob
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