Thursday, September 3, 2020

उत्तरकाशी

 माँ गंगे माँ, 

खड़े प्रवाह में तेरे,

महसूस करने दिव्यता 

हैं द्वार पर तेर। 


तुझमें तप आराधना है, 

तुझमें  स्वांस है ,

तेरी प्रबल तरंगिनि में

वो  उच्छवास  है,


जो भक्त के भटकते मन को 

दे दे आसरा 

जो तुझमें रम चुका है माँ,

स्वयं कहाँ रहा?


बहा दो सारी कालिमा 

प्रकाश घोल दो

स्वयं के जल स्पर्श से माँ 

पुत्र बोल दो। 

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