अंगीठी की
राख के नीचे
दबी एक चिंगारी
भीगती रही बारिश में ,
रात भर .
लेकिन
किसी तरह ,
बचाकर रखा ,
उसने ,खुद का वजूद.
और सुबह,
जब किसी ने
नयी, हरी लकड़ियों को
जलाने के लिए
फूंक मारी, उस राख में
तो फिर से जी पड़ी
ये चिंगारी ..
सोचता हूँ मैं-
इस धधक के लिए
ज्यादा जरुरी क्या है ?
चिंगारी का ,
खुद को जिन्दा रखना ,
या किसी राख फूंकने वाले का होना
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Mujhe to lagta hai ki chingari ka khud ko jinda rakhna. Agar jinda rahi to uparwala jarur kisi na kisi phukne wale ko bhej dega. Angrezi ki famous kahawat ko kya duhrana, khair f
ReplyDeleteir bhi formality kar raha hu, "God helps those who help themselves"
Really beautiful poem, Nice message.
thanks kumar for your inspiring words...
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