‘जन गण
मन’ में
खड़े रहे
जो,
‘जन’ को
देख न पाते
हें.
सड़क किनारे
भीख माँगते,
रग्घू फिर मर
जाते हें.
गाने और
निभाने में है,
फ़र्क हमेशा होता.
गंगा -मैली करके
वो जो
विन्ध्य हिमाचल गाते
हें.
जन
गण मन में
खड़े रहे
जो
‘जन’ को
देख न पाते
हें.
जाति
धर्म की तीखी
बाढें,
जन के
बीच चढ़ा दीं,
लोगों में फिर
नफ़रत भरके
‘तव जय
गाथा’ गाते हें,
‘जन गण
मन’ में
खड़े रहे
जो
‘जन’ को
देख न पाते
हें
शुभ प्रभात
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर
thank you madam.
Deleteवाह्ह..बहुत ही लाज़वाब👌👌👌
ReplyDeleteSadhuwad Madam.
Deleteसटीक चिंतन। सुन्दर रचना।
ReplyDeletethank you sir.
Deleteसटीक चिंतन। सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!!!
लाजवाब...
Thank you Madam.
Deleteसुन्दर।
ReplyDeletethank you sir.
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