मुझे याद है मेरा घर
शहर से २० घंटे का मुश्किल सफ़र
लेकिन सफ़र को आसान बनाती
पानी मैं धुलती टहनियां
और ट्रेन का पीछा करती नदियाँ
मेरे कस्बे मैं एक दूसरे को जानते लोग
और खरोंचें लगने पर जमा हो जाता
लोगों का हुजूम.
मेरा घर शहर से कुछ दूर
हुआ करता था ...
लेकिन...
अब शहर आ रहा है
मेरे गली मोहल्ले के पास
आसार कम हैं कि
पडोसी,पडोसी को पहचान पाए
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
gd wrk..bt try 2 change the vibrant color of the background and for the fonts 2 becoz its strainin fr eyes!!!
ReplyDeletegreat work...kamal!! i fell in love with the last para of this poem..!!
ReplyDeleteand the best is the introduction of the profile!! it should qualify as a great piece of literature in itself!!