Tuesday, December 29, 2009

shahar main girte kasbe

मुझे याद है मेरा घर
शहर से २० घंटे का मुश्किल  सफ़र
लेकिन सफ़र को आसान बनाती
पानी मैं धुलती टहनियां
और ट्रेन का पीछा करती नदियाँ

मेरे कस्बे मैं एक दूसरे को जानते लोग
 और खरोंचें लगने पर जमा हो जाता 
लोगों का हुजूम.

मेरा घर शहर से कुछ दूर
हुआ करता था ...
लेकिन...
 अब शहर आ रहा है
मेरे गली मोहल्ले के पास
आसार कम हैं कि
पडोसी,पडोसी को पहचान पाए

2 comments:

  1. gd wrk..bt try 2 change the vibrant color of the background and for the fonts 2 becoz its strainin fr eyes!!!

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  2. great work...kamal!! i fell in love with the last para of this poem..!!

    and the best is the introduction of the profile!! it should qualify as a great piece of literature in itself!!

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