प्रिये
तुम्हारे होंठों की लिपिस्टिक की नमी
बनी रहती है भरी दुपहरी मैं,
ये बड़ी बात नहीं ...
बड़ी बात तो ये कि
अब उसके माथे से भी
उतना पसीना नही निकलता है
जबकि तुम कदम दो कदम
चलने मैं, छतरी लगा लेती हो ,
और वो मीलों तक सर पर टोकरी लेकर चलती है .
तुम सोचती रहती हो हरदम ,
फैशन टीवी चैनलों और मैगजीनों मैं -
कपड़ों के कद को कैसे कम किया जाए .
और एक वो..
जो इस उम्मीद मैं दुगना काम करती है कि-
मुनाफा बड़े तो सेल से एक सस्ती सी साडी खरीद लाये,
क्योंकि-"जर्जर हो चुकी साड़ी को आते जाते
कई जोड़ी वहशी आँखें घूरा करती हैं."
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