कई बार
जब सड़क पर ,
गोलगप्पे वाला
दिख जाया करता है ,
मैं भी लुफ्त लेने पहुँच जाता हूँ .
लेकिन मेरे लुफ्त लेने का तरीका
थोडा हटकर होता है -
मैं गिनकर गोलगप्पे लेता हूँ
और गिनने कि इसी प्रक्रिया मैं
स्वाद कहीं पीछे छूट जाता है .
सोचता हूँ-
मुझसे बेहतर गोलगप्पों का स्वाद
वो लोग लेते हैं
जिन्हें सभ्य समाज ' दिहाड़ी वाला'( मजदूर) कहता है .
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