कुछ इस तरह था बचपन......
न शर्तें कुछ करने की
ना परतें कुछ गढ़ने की
ना बेवजह की मारामारी
न सर हिलाना
बेतुकी बातों में.
न सर खपाना ,
गहराती रातों में.
ना ताने देती "बेकारी"
माँ का बुला बुलाकर
निवाला खिलाना
भरी दुपहरी में डोलना
और गंदे बनकर आना
फिर डांट खाने की बारी
रात को टी-वी के सामने
पूरे परिवार का जम जाना
छोटे भाई का बेवजह उलझ पड़ना
और माँ का बीचबचाव को आना
दिखती मेरे बड़े होने की लाचारी
माँ को आँखें दिखाना
फिर प्यार से लिपट जाना
फिर रोना आँचल पे और
भिगोना साड़ी का कोना
फिर माँ के आंसुओं की बारी
......कुछ इस तरह था बचपन.
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your best writing till date.......
ReplyDeleteamit b.
budhu bade hona koi lachari nhi hoti.....
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