निक्कमे होते है वो लोग-
जो अपनी सोच
एक कविता कि शक्ल मैं
ले आते हैं .
इन लोगों को लगता है ,
कि कविता लिखना
एक आलीशान काम होता है .
जिसे हर कोई नही कर सकता
इस प्रजाति के लोग
"क्रिएटिव" होने का झूठा
जाल फेंकते रहते हैं-
उन लोगों पर ,जिनको
फुर्सत नही रोजमर्रा के कामों से .
कोई बोले इनसे कि
इनके वो अंगारे-
जो कविताओं मैं आग उगलते हैं
जमीन पर आंच सुलगाकर दिखाएं ?
इतनी हिम्मत की तो आप देखेंगे-
"कुकुरमुत्ते" कि तरह उग आये ये
"तथाकथित" कवि धीरे धीरे
"लुप्तप्राय" हो जाते है .
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